शनिवार, 22 जून 2013

विष्णुस्वामी परंपरा

पद्म पुराण अनुसार वैष्णव संप्रदाय में चार संप्रदाय वैदिक सम्प्रदाय हें जिनके स्थापको के रूप में स्वयं भगवान् अवतार रूप प्रगट हुवे हें । जिनमे विष्णुस्वामी संप्रदाय (रूद्र संप्रदाय) praachin संप्रदाय है ।
यह चार संप्रदाय इस प्रकारसे हें :-
१ विष्णुस्वामी संप्रदाय - विष्णुस्वामी / वल्लभाचार्य .{शुद्धाद्वैत} 
२ श्री संप्रदाय -        रामानुजाचार्य .{विशिष्टाद्वैत}
३ ब्रह्मा संप्रदाय - मध्वाचार्य .{द्वैत वाद}
४ सनकादि संप्रदाय - निम्बार्काचार्य. {द्वैत- अद्वैतवाद (भेद अभेद)
यहाँ हम बात करेंगे विष्णुस्वामी संप्रदाय की जिसकी स्थापना कई सदियों पहेले मूल जगद्गुरु विष्णुस्वामी ने  की थी जो श्री कृष्ण का अवतार थे ।इस संप्रदाय में भगवद् आज्ञा को मूल माना गया है । भगवद् आज्ञा से ही इस संप्रदाय का कारभार चला है । कलियुग के  प्रारंभ में प्रायः २५०० वर्षों  के  व्यतीत हो जाने के बाद भक्ति के उद्धार एवं प्रचार का  पुनः संयोग आया   ।  उस  समय  स्वकीय  धर्ममय  शासन  से  प्रख्यात एक  क्षत्रिय राजा द्रविड़ देश  में  राज्य  करता  था ।  उस राजा के गुरु श्री देवस्वर आचार्य के यहाँ भगवद आज्ञा अनुसार भविष्यवाणी  अनुसार एक  तेजस्वी बालक  का जन्म  हुआ ।  उस पुत्र का  नाम ''विष्णु स्वामी '' रखा  गया  ।  बाल्यावस्था  से ही भग्वदवाणी अनुसार कला के निधि इस बालक के लक्षण  सृष्टि के तारणहार के समान  दिखने लगे । यज्ञोपवीत के बाद उन्होंने वेद - उपवेद , इतिहास ,पुराण -  उपपुराण , स्मृति  , वेदांत,सांख्य ,योग  आदि  समस्त  शब्द साहित्य  का रहस्य ज्ञान अल्प  समय  में ही कर लिया ।  शास्त्रियाज्ञान  एवं सर्वतोमुखी प्रतिभा में वह दुसरे वेदव्यास के सामान  कहे जाने  लगे  और माने   भी जाने  लगे  ।  भूतल पर जब दैवी  सृष्टि का उद्भव होने लगा उन दैवी जीवों के उद्धार के लिए पूर्ण पुरुषोत्तम स्वरुप  भगवन जगदीश  में से भक्ति-प्रवर्तक चार संप्रदाय के आचार्यो का प्राकट्य होता है । इत्यादि  पद्मपुराण के वचनों के  अनुसार भक्ति की स्थापना और दैवी जीवों के उद्धार के लिए भगवान श्रीकृष्ण  सर्वप्रथम विष्णुस्वामी के रूप में अवतरित हुवे ।  कलियुग  द्वारा उछिन्न भक्ति संप्रदाय के जीवों के कल्याण प्राप्त्यर्थ  भग्वद स्वरुप श्री विष्णुस्वामी के द्वारा भूतल पर पुन: प्रतिष्ठित  हुवा ।  उनके अनन्तर इस मार्ग में उनके वंश परंपरा तथा शिष्य परंपरा  में आजसे  लगभग ५०० वर्ष पूर्व तक ७००  आचार्य हुवे । आज भी आपके वंशज इस भूतल पर विद्यमान  हें  । इसी प्रकार से यह परंपरा चलती रही
मेरे पिताश्री के विध्या गुरु दीक्षा गुरु करंजी श्री १०८ आचार्यवर्य जगद्गुरु आदि विष्णुस्वामी वन्शावतंस आदि विष्णुस्वामी पीठाधिपति   नि.ली. श्रीकृष्ण लालाजी महाराज श्री (द्वारका) आप इस वंश परंपरा के आचार्य हुवे जो द्वारका बेट द्वारका में निवास करते  थे आपके वंश की जानकारी अभी अप्राप्य है ।
द्वारिका में आपकी आदि विष्णुस्वामी पीठ  में बचपन में हम बोहोत रहे । अभी इस पीठ की जानकारी अप्राप्य है तथा इस पीठ अंतर्गत कई मठ, अखाड़े, चलते थे इनकी जानकारी भी अप्राप्य है जिन किसी को जानकारी मिले कृपया यहाँ लिखें । नहीं तो इसी प्रकार से हमारे मूल सभी संप्रदाय लुप्त हो जायेंगे ।। " धर्मो रक्षति रक्षितः "